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हट जाएँ अब ये शम्स-ओ-क़मर दरमियान से - राग़िब मुरादाबादी कविता - Darsaal

हट जाएँ अब ये शम्स-ओ-क़मर दरमियान से

हट जाएँ अब ये शम्स-ओ-क़मर दरमियान से

मेरी ज़मीं मिलेगी गले आसमान से

सीने में हैं ख़ला के वो महफ़ूज़ आज भी

जो हर्फ़ अदा हुए हैं हमारी ज़बान से

वो मेरे ही क़बीले का बाग़ी न हो कहीं

इक तीर इधर को आया है जिस की कमान से

सय्याद ने किया है उसी को असीर-ए-दाम

ताइर जो दिल-गिरफ़्ता रहा है उड़ान से

नाकामियों ने और बढ़ाए हैं हौसले

गुज़रा हूँ जब कभी मैं किसी इम्तिहान से

कहलाए जिस में रह के हमेशा किराया-दार

क्या उन्स हो मकीन को ऐसे मकान से

क्यूँ पैरवी पे उन की हो माइल मिरा दिमाग़

'ग़ालिब' के हूँ न 'मीर' के मैं ख़ानदान से

'राग़िब' ब-एहतियात ही लाज़िम है गुफ़्तुगू

दुश्मन को भी गज़ंद न पहुँचे ज़बान से

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In Hindi By Famous Poet Raghib Muradabadi. is written by Raghib Muradabadi. Complete Poem in Hindi by Raghib Muradabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.