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हक़ बात ही कहेंगे सर-ए-दार देखना - राग़िब मुरादाबादी कविता - Darsaal

हक़ बात ही कहेंगे सर-ए-दार देखना

हक़ बात ही कहेंगे सर-ए-दार देखना

अहल-ए-क़लम की जुरअत-ए-इज़हार देखना

देखें जिन्हें हैं दैर के दीवार-ओ-दर अज़ीज़

हम को तो सिर्फ़ सू-ए-दर-ए-यार देखना

करता रहा क़लम यूँही शाख़ें जो बाग़बाँ

नापैद होगा साया-ए-अश्जार देखना

सरकार आप पर जो छिड़कते हैं जान आज

बच कर चलेंगे कल ये नमक-ख़्वार देखना

बुनियाद जिस की है हवस-ए-इक़्तिदार पर

होने को है वो क़िलअ' भी मिस्मार देखना

डाला जो तुम ने हाथ कुलाह-ए-अवाम पर

लग जाएँगे सरों के भी अम्बार देखना

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In Hindi By Famous Poet Raghib Muradabadi. is written by Raghib Muradabadi. Complete Poem in Hindi by Raghib Muradabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.