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वाह क्या आलम अजब है इंतिज़ार-ए-यार का - राग़िब बदायुनी कविता - Darsaal

वाह क्या आलम अजब है इंतिज़ार-ए-यार का

वाह क्या आलम अजब है इंतिज़ार-ए-यार का

नाम है दीदार-ए-हसरत हसरत-ए-दीदार का

सैर है जन्नत की सैरों से तिरे आशिक़ का दिल

ले के जन्नत क्या करे भूका तिरे दीदार का

ज़र्रा-ए-दिल में उतर आए हज़ारों आफ़्ताब

क्या करिश्मा है ख़्याल-ए-जल्वा-गाह-ए-यार का

बढ़ चला था तेरी ग़फ़लत से भी बार-ए-बेकसी

मौत ने पूछा मिज़ाज आ कर तिरे बीमार का

जानते हैं इक झलक में जान-ओ-दिल मिट जाएँगे

लोग मुँह तकते हैं तेरे तालिब-ए-दीदार का

ध्यान में उस के दो-आलम से खिंचा बैठा हूँ मैं

या'नी इक नक़्शा खिंचा है जज़्ब-ए-हुस्न-ए-यार का

जिस को कहते हैं मुक़द्दर आशिक़ान-ए-बद-नसीब

है वो इक बिगड़ा हुआ ख़ाका मिज़ाज-ए-यार का

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In Hindi By Famous Poet Raghib Badayuni. is written by Raghib Badayuni. Complete Poem in Hindi by Raghib Badayuni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.