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बहुत दुश्वार है अब आईने से गुफ़्तुगू करना - राग़िब अख़्तर कविता - Darsaal

बहुत दुश्वार है अब आईने से गुफ़्तुगू करना

बहुत दुश्वार है अब आईने से गुफ़्तुगू करना

सज़ा से कम नहीं है ख़ुद को अपने रू-ब-रू करना

अजब सीमाबियत है इन दिनों अपनी तबीअत में

कि जिस ने बात की हँस कर उसी की आरज़ू करना

इबादत के लिए ततहीर-ए-दिल की भी ज़रूरत है

वज़ू के बाद फिर अश्क-ए-नदामत से वज़ू करना

ये वस्फ़-ए-ख़ास है कुछ आप से बा-वस्फ़ लोगों का

हमें आता नहीं है आप को लम्हे में तू करना

तिरी फ़ितरत में यूँ मुसबत इशारे ढूँडता हूँ मैं

किसी सहरा को जैसे चाहता हूँ आबजू करना

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In Hindi By Famous Poet Raghib Akhtar. is written by Raghib Akhtar. Complete Poem in Hindi by Raghib Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.