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कितना पोशीदा हवाओं का सफ़र रक्खा गया - रफ़ीक़ुज़्ज़माँ कविता - Darsaal

कितना पोशीदा हवाओं का सफ़र रक्खा गया

कितना पोशीदा हवाओं का सफ़र रक्खा गया

आने वाले मौसमों से बे-ख़बर रक्खा गया

आज भी फिरता हूँ उस की जुस्तुजू में हर तरफ़

कौन सी बस्ती में आख़िर मेरा घर रक्खा गया

चंद मुबहम ख़्वाब आँखों में लिए फिरता हूँ मैं

और क्या मेरे लिए ज़ाद-ए-सफ़र रक्खा गया

दोस्तों में कुछ मिरी पहचान तो बाक़ी रहे

इस लिए मुझ में अजब रंग-ए-हुनर रखा गया

उस हथेली पर चमकती रेत के ज़र्रे हैं अब

जिस हथेली पर कभी गंज-ए-गुहर रखा गया

नोक-ए-नेज़ा पर कभी तश्त-ए-रऊनत में कभी

हर तमाशे के लिए मेरा ही सर रक्खा गया

मेरा अपना ख़ौफ़ ही क्या कम था लेकिन ऐ 'रफीक'

मेरी अपनी ज़ात में किस किस का डर रक्खा गया

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In Hindi By Famous Poet Rafiquzzaman. is written by Rafiquzzaman. Complete Poem in Hindi by Rafiquzzaman. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.