तफ़्सील-ए-इनायात तो अब याद नहीं है
पर पहली मुलाक़ात की शब याद है मुझ को
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बात तो जब है कि जज़्बों से सदाक़त फूटे
हिज्र-ज़दा आँखों से जब आँसू निकले ख़ामोशी से
जब तिरी चाह में दामान-ए-जुनूँ चाक हुआ
उदास शाम की तन्हाइयों में जलता हुआ
तहलील मौसमों में कर के अजब नशा सा
मिस्ल-ए-बहिश्त-ए-ख़ुश-नुमा कौन-ओ-मकान में
आज वीरानियों में मिरा दिल नया सिलसिला चाहता है
ये बात मुन्कशिफ़ हुई चराग़ के बग़ैर भी
दस्तक
मोहब्बतों की मसाफ़त से कट के देखते क्या
ज़िंदा हैं मिरे ख़्वाब ये कब याद है मुझ को