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ये बात मुन्कशिफ़ हुई चराग़ के बग़ैर भी - रफ़ीक़ ख़याल कविता - Darsaal

ये बात मुन्कशिफ़ हुई चराग़ के बग़ैर भी

ये बात मुन्कशिफ़ हुई चराग़ के बग़ैर भी

मैं ढूँड लूँगा हर ख़ुशी चराग़ के बग़ैर भी

हुआ था जिस जगह कभी विसाल-ए-यार दोस्तो

है उस जगह पे रौशनी चराग़ के बग़ैर भी

लिक्खी गई हैं जिस के साथ ज़िंदगी की मंज़िलें

वो आ मिलेगा आदमी चराग़ के बग़ैर भी

मसर्रतों के क़ाफ़िले लुटा रही है फिर मुझे

तिरी ये ख़ुद-सुपुर्दगी चराग़ के बग़ैर भी

मैं तज़्किरा करूँ तो क्या करूँ जमाल-ए-यार का

दमक रही थी दिलकशी चराग़ के बग़ैर भी

तुम्हारी एक याद बे-शुमार हसरतों के रंग

निगाह में सजा गई चराग़ के बग़ैर भी

गिला किसी से क्यूँ करूँ गुज़र ही जाएगी 'ख़याल'

ये मुख़्तसर सी ज़िंदगी चराग़ के बग़ैर भी

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In Hindi By Famous Poet Rafique Khayal. is written by Rafique Khayal. Complete Poem in Hindi by Rafique Khayal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.