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तहलील मौसमों में कर के अजब नशा सा - रफ़ीक़ ख़याल कविता - Darsaal

तहलील मौसमों में कर के अजब नशा सा

तहलील मौसमों में कर के अजब नशा सा

फैला हुआ है हर-सू कुछ दिन से रत-जगा सा

मिलते हैं रोज़ उन से हसरत की सरहदों पर

रहता है फिर भी हाइल क्यूँ जाने फ़ासला सा

बरसों के सब मरासिम तोड़े हैं उस ने ऐसे

पल भर में टूट जाए जिस तरह आइना सा

ताज़ा रफ़ाक़तों के पुर-कैफ़ सिलसिलों में

रहता है दिल न जाने अब क्यूँ डरा डरा सा

मेरी बला से चाहत की लाख बारिशें हों

मैं पहले भी था प्यासा मैं आज भी हूँ प्यासा

दोनों में आज तक वो पहली सी तिश्नगी है

फिर वस्ल में नहीं क्यूँ वो लुत्फ़ इब्तिदा सा

तन्हाइयों की ज़द में रहती है रूह मेरी

इस वास्ते हूँ यारो मैं आज कल बुझा सा

टकरा गए जो उन से हम राह में अचानक

इक दास्ताँ हुई फिर वो हादसा ज़रा सा

जिस पर निगाह ठहरी जान-ए-'ख़याल' अपनी

वो अजनबी है लेकिन लगता है आश्ना सा

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In Hindi By Famous Poet Rafique Khayal. is written by Rafique Khayal. Complete Poem in Hindi by Rafique Khayal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.