समय हो गया
फिर मक़ाम-ए-रिफ़ाक़त पे मुदग़म हुईं
सूइयाँ दोनों घड़ियाल की
रफ़्त ओ आमद के चक्कर में
घंटे की आवाज़ में
मेरा दिल खो गया
अपनी टिक-टिक में
बहता रहा वक़्त
कितना समय हो गया!
साल-हा-साल
पानी के चश्मे से
गीले किए लब अनासिर ने
जलते अलाव पे
हाथ अपने तापे मज़ाहिर ने
सीने की धड़कन से
ना-दीद के रंग-ओ-रोग़न से
अश्या ने
बीनाई हासिल की
मक़्सूम के ताक़चे से
जहाँ फूल रक्खे थे
लकड़ी के संदूक़चे से
ख़ज़ाना उठा ले गई रात
मुट्ठी से गिरते रहे
रेत की मिस्ल दिन!
एक दिन
सेहन की पील-गूं धूप में
आहनी चारपाई पे लेटे हुए
एक झपकी सी आई
तो मैं सो गया
मेरे चेहरे पे
बारिश की इक बूँद ने
गर के दस्तक दी:
बाबा चलो,
अपने कमरे के अंदर
समय हो गया
(468) Peoples Rate This