बीज अंदर है
बीज अंदर है
लेकिन मैं बाहर हूँ
अपनी ज़मीं से
फ़क़त मुश्त दो मुश्त ऊपर
ख़ला में उगा हूँ
मिरी कोई जड़ ही नहीं है
नहीं इल्म
तालीफ़ की रौशनी ने
हवा और पानी ने किस तरह सींचा
नमी कैसे मेरे मसामों में आई
जुदाई
सही मैं ने कैसे
मुक़र्रर जो अज़लों से था
बीच का फ़ासला
वस्त ना वस्त का मरहला
मैं ने कैसे गवारा किया
आसमाँ के तले
मैं ने धरती पे फैले हुए
एक सोंधी सी ख़ुशबू में लिपटे हुए
लहलहाते जहानों का
ख़ुश्क और बंजर ज़मानों का
कैसे नज़ारा किया
चंद काँटों की सूई से
कौनैन के
अपने क़ुतबैन के
पेच-ओ-ख़म में
वजूद-ओ-अदम में
जली और ख़फ़ी सारे अबआ'द की सम्त
कैसे इशारा किया
मैं ने कैसे ब-यक वक़्त
अपनी फ़ना और बक़ा से किनारा किया
बीज अंदर है
कैसे समझ पाएगा
बे-नुमू ओ नुमू-कार दुनिया में
मुझ जैसे पौदे ने
कैसे गुज़ारा किया
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