बड़ा पुर-हौल रस्ता था
बड़ा पुर-हौल रस्ता था
बदन के जौहर-ए-ख़ुफ़्ता में कोई क़ुव्वत-ए-लाहूत मुदग़म थी
किसी ग़ूल बयाबानी की गर्दिश मेरे दस्त-ओ-पा की महरम थी
दहान-ए-जाँ से ख़ारिज होने वाली भाप में थे सालिमात-ए-दर्द रौशन
गुज़रगाहों के सब ना-मो'तबर पत्थर
ख़ला में उड़ने वाली पस्त मिट्टी के सियह ज़र्रे
पहाड़ और आइने साए कुरे पेड़ों के पत्ते
पानियों की गोल लहरें
रात की ला-इल्म चीज़ें
शश-जिहत के सब अनासिर ज़ोर से पीछे हटे थे
और मैं आगे हज़ारों कोस आगे बढ़ गया था
इक अजब रफ़्तार मेरी आग में थी
किस क़दर पुर-हौल रस्ता था
पड़ाव के लिए कितने जज़ीरे दरमियाँ आए
ज़मीं मुड़ मुड़ के आई और इक इक कर के सातों आसमाँ आए
मुसलसल चल रहा था मैं
हवा में ढल रहा था मैं
मसामों से शुआ-ए-बे-निहायत फूटी पड़ती थी
अबद का इक जड़ाव ताज मेरे सर पे रखा था
बड़ा पुर-हौल रस्ता था
कोई बर्क़-ए-शबाहत आरज़ू-बरदार मेरी आग में थी
इक अजब रफ़्तार मेरी आग में थी
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