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रोज़ उठता है धुआँ कोह-ए-निदा के उस पार - रफ़ीआ शबनम आबिदी कविता - Darsaal

रोज़ उठता है धुआँ कोह-ए-निदा के उस पार

रोज़ उठता है धुआँ कोह-ए-निदा के उस पार

चाँद चुप-चाप सुलगता है फ़ज़ा के उस पार

भीग जाती है ये मासूम सी धरती हर सुब्ह

कौन रोता है बताओ तो घटा के उस पार

सरहद-ए-जिस्म से आगे हद-ए-इम्काँ से परे

शहर-ए-जाँ रहता है दीवार-ए-अना के उस पार

नेकियाँ बाँटते रहने की सज़ा लाज़िम है

पारा पारा है बदन कू-ए-जज़ा के उस पार

मैं कि मंजधार में हूँ कौन निकाले 'शबनम'

छुप गया वो तो कहीं मुझ को बुला के उस पार

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In Hindi By Famous Poet Rafia Shabnam Abidi. is written by Rafia Shabnam Abidi. Complete Poem in Hindi by Rafia Shabnam Abidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.