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मैं अपनी आँख को उस का जहान दे दूँ क्या - रफ़ी रज़ा कविता - Darsaal

मैं अपनी आँख को उस का जहान दे दूँ क्या

मैं अपनी आँख को उस का जहान दे दूँ क्या

ज़मीन खींच लूँ और आसमान दे दूँ क्या

मैं दुनिया ज़ाद नहीं हूँ मुझे नहीं मंज़ूर

मकान ले के तुम्हें ला-मकान दे दूँ क्या

कि एक रोज़ खुला रह गया था आईना

अगर गवाह बनूँ तो बयान दे दूँ क्या

उड़े कुछ ऐसे कि मेरा निशान तक न रहे

मैं अपनी ख़ाक को इतनी उड़ान दे दूँ क्या

ये लग रहा है कि ना-ख़ुश हो दोस्ती में तुम

तुम्हारे हाथ में तीर ओ कमान दे दूँ क्या

समझ नहीं रहे बे-रंग आँसुओं का कहा

उन्हें मैं सुर्ख़-लहू की ज़बान दे दूँ क्या

सुना है ज़िंदगी कोई तह-ए-समुंदर है

भँवर के हाथ में ये बादबान दे दूँ क्या

ये फ़ैसला मुझे करना है ठंडे दिल से 'रज़ा'

नहीं बदलता ज़माना तो जान दे दूँ क्या

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In Hindi By Famous Poet Rafi Raza. is written by Rafi Raza. Complete Poem in Hindi by Rafi Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.