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लम्स को छोड़ के ख़ुशबू पे क़नाअ'त नहीं करने वाला - रफ़ी रज़ा कविता - Darsaal

लम्स को छोड़ के ख़ुशबू पे क़नाअ'त नहीं करने वाला

लम्स को छोड़ के ख़ुशबू पे क़नाअ'त नहीं करने वाला

ऐसी-वैसी तो मैं अब तुम से मोहब्बत नहीं करने वाला

मुझ से बेहतर कोई दुनिया में किताबत नहीं करने वाला

पर तिरे हिज्र की मैं जल्द इशाअत नहीं करने वाला

अपने ही जिस्म को कल उस ने मिरी आँखों से पूरा देखा

इस से बढ़ कर कोई मंज़र कभी हैरत नहीं करने वाला

मज़हब-ए-इश्क़ से मंसूब ये बातें तो ख़ारिज की हैं

शाम-ए-हिज्राँ मैं किसी तौर मैं शिरकत नहीं करने वाला

ऐसी भगदड़ में कोई पावँ तले आए तो शिकवा न करे

गिर गया मैं तो कोई मुझ से रिआ'यत नहीं करने वाला

लौ लरज़ने का कोई और ही मतलब न निकल आए कहीं

पूछने पर भी चराग़ और वज़ाहत नहीं करने वाला

मुझे चलते हुए रस्ते के शजर देखते जाते हैं 'रज़ा'

पर मिरे साथ उखड़ कर कोई हिजरत नहीं करने वाला

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In Hindi By Famous Poet Rafi Raza. is written by Rafi Raza. Complete Poem in Hindi by Rafi Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.