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अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला था - रफ़ी रज़ा कविता - Darsaal

अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला था

अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला था

मिरा मिज़ाज सवालात करने वाला था

मुझे सलीक़ा न था रौशनी से मिलने का

मैं हिज्र में गुज़र-औक़ात करने वाला था

मैं सामने से उठा और लौ लरज़ने लगी

चराग़ जैसे कोई बात करने वाला था

खुली हुई थीं बदन पर रवाँ रवाँ आँखें

न जाने कौन मुलाक़ात करने वाला था

वो मेरे काबा-ए-दिल में ज़रा सी देर रुका

ये हज अदा वो मिरे साथ करने वाला था

कहाँ ये ख़ाक के तोदे तले दबा हुआ जिस्म

कहाँ मैं सैर-ए-समावात करने वाला था

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In Hindi By Famous Poet Rafi Raza. is written by Rafi Raza. Complete Poem in Hindi by Rafi Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.