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वरक़ वरक़ तुझे तहरीर करता रहता हूँ - रईसुदीन रईस कविता - Darsaal

वरक़ वरक़ तुझे तहरीर करता रहता हूँ

वरक़ वरक़ तुझे तहरीर करता रहता हूँ

मैं ज़िंदगी तिरी तशहीर करता रहता हूँ

बहुत अज़ीज़ है मुझ को मसाफ़तों की थकन

सफ़र को पाँव की ज़ंजीर करता रहता हूँ

मुसव्विरों को है ज़ोम-ए-मुसव्विरी लेकिन

मैं अपनी ज़ीस्त को तस्वीर करता रहता हूँ

मैं सौंप देता हूँ हर रात अपने ख़्वाबों को

हर एक सुब्ह को ताबीर करता रहता हूँ

सिपर बनाता हूँ लफ़्ज़ों को शेर में लेकिन

क़लम को अपने मैं शमशीर करता रहता हूँ

हज़ार ऐब ख़ुद अपने ही नाम में लिख कर

मैं तेरी राय हमा-गीर करता रहता हूँ

वो मेरी फ़िक्र में बदले का ज़हर घोलता है

मगर मैं ज़हर को इक्सीर करता रहता हूँ

मैं शहर शहर भटकता हूँ और रोज़ाना

ख़ुद अपनी ज़ात की तामीर करता रहता हूँ

लिखे हैं हिस्से में मेरे 'रईस' सन्नाटे

नवा-ए-वक़्त की तस्ख़ीर करता रहता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Raeesuddin Raees. is written by Raeesuddin Raees. Complete Poem in Hindi by Raeesuddin Raees. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.