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मंज़िल-ए-यार बे-निशाँ भी नहीं - रईस नियाज़ी कविता - Darsaal

मंज़िल-ए-यार बे-निशाँ भी नहीं

मंज़िल-ए-यार बे-निशाँ भी नहीं

दिल हो ग़ाफ़िल तो राज़-दाँ भी नहीं

बर्क़ क्यूँ बे-क़रार है इतना

अब तो गुलशन में आशियाँ भी नहीं

हो नज़र में अगर हक़ीक़त-ए-हुस्न

ज़िंदगी सादा दास्ताँ भी नहीं

वो जफ़ाओं पे शर्मसार न हों

अब ये मंज़िल मुझे गराँ भी नहीं

यार की जुस्तुजू को क्या कहिए

राएगाँ भी है राएगाँ भी नहीं

दिल तक आए तो वजह-ए-तस्कीं हो

वो नज़र इतनी मेहरबाँ भी नहीं

अल्लाह अल्लाह सुरूर-ए-याद-ए-हबीब

अब मुझे हिज्र का गुमाँ भी नहीं

लब तक आ जाए तो क़यामत है

आशिक़ी कार-ए-बे-फ़ुग़ाँ भी नहीं

अज़्मत-ए-हुस्न इश्क़ से है 'रईस'

सर नहीं है तो आस्ताँ भी नहीं

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In Hindi By Famous Poet Raees Niyazi. is written by Raees Niyazi. Complete Poem in Hindi by Raees Niyazi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.