जो नूर देखता हूँ मैं जाम-ए-शराब में
जो नूर देखता हूँ मैं जाम-ए-शराब में
वो आफ़्ताब में है न वो माहताब में
इस तरह अज़्म-ए-ज़ोहद है अहद-ए-शबाब में
चलने का जैसे क़स्द करे कोई ख़्वाब में
मेरी नज़र से छुप के रहें वो हिजाब में
मेरे नदीम क्या मह-ओ-अंजुम हैं ख़्वाब में
मुझ को सुनाए जाते हैं अफ़्साने ख़ुल्द के
डूबा हुआ हूँ मस्ती-ए-शे'र-ओ-शराब में
आख़िर तिलिस्म-ए-ग़ुन्चा-ओ-गुल टूट कर रहा
मेरी नज़र से छुप न सके वो हिजाब में
इंसान खा रहा है फ़रेब-ए-हयात क्यूँ
कश्ती कभी रवाँ भी हुई है सराब में
बेगाना-ए-नज़र थे हमीं इस का क्या इलाज
शामिल हैं रहमतें भी किसी के इ'ताब में
हर मंज़र-ए-जमील पे गो रुक गई नज़र
ठहरे मगर तुम्हीं निगह-ए-इंतिख़ाब में
मेरा हर इक नफ़स है पयाम-ए-रज़ा-ए-दोस्त
ज़ाहिद फँसा हुआ है अज़ाब-ओ-सवाब में
हर मंज़र-ए-जमील को ठुकरा के ऐ 'रईस'
ख़ुद सामने हों अपनी नज़र के जवाब में
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