दिल-ओ-निगाह पे जिस को हो इख़्तियार चले
दिल-ओ-निगाह पे जिस को हो इख़्तियार चले
रह-ए-वफ़ा में कोई भी न ख़ाम-कार चले
हमें रविश पे ज़माने की ए'तिबार नहीं
हमारे साथ ज़माना हज़ार बार चले
हम अपने वक़्त के आक़ा हम अपने दौर के शाह
मगर ख़ुदा न करे अपनी पेश-ए-यार चले
ये रहरवान-ए-मोहब्बत ही ख़ूब जानते हैं
कि फ़र्श-ए-गुल पे चले या ब-नोक-ए-ख़ार चले
न राहबर पे नज़र और न मंज़िलों की ख़बर
तिरे क़दम-ब-क़दम तेरे जाँ-निसार चले
हमारे बअ'द के लोगों पे जाने क्या गुज़रे
'रईस' हम तो बड़े चैन से गुज़ार चले
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