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यूँ भी गुज़री हैं मिरी शाम-ओ-सहर पानी में - रईस नारवी कविता - Darsaal

यूँ भी गुज़री हैं मिरी शाम-ओ-सहर पानी में

यूँ भी गुज़री हैं मिरी शाम-ओ-सहर पानी में

अश्क बन बन के बहा ख़ून-ए-जिगर पानी में

क्या डराएँगे ये आफ़ात-ए-ज़माना हम को

हम बना लेते हैं जब राह-ए-सफ़र पानी में

सख़्त से सख़्त भी पत्थर न रहा फिर पत्थर

अक्सर आया है नज़र ऐसा असर पानी में

तुम इसी तौर मिरे दिल में रहा करते हो

जिस तरह रहता है पोशीदा गुहर पानी में

जज़्बा-ए-शौक़-ओ-तसव्वुर की बदौलत अक्सर

देखता रहता हूँ मैं अक्स-ए-क़मर पानी में

ख़्वाहिश-ए-ऐश-ओ-तरब क्यूँ हो ज़माने की उसे

ज़िंदगी होती रही जिस की बसर पानी में

रौशनी देती वो कैसे रह-ए-उल्फ़त पे 'रईस'

शम-ए-उम्मीद जलाई थी मगर पानी में

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In Hindi By Famous Poet Raees Narvi. is written by Raees Narvi. Complete Poem in Hindi by Raees Narvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.