Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_b52d1aa4c19368205a434db191378a5e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
उजले परों में कौन छुपा है पता नहीं - रईस फ़राज़ कविता - Darsaal

उजले परों में कौन छुपा है पता नहीं

उजले परों में कौन छुपा है पता नहीं

माथे पे तो किसी के फ़रेबी लिखा नहीं

गलियों में कोई आ के फिर इक बार चीख़ जाए

मुद्दत से सारे शहर में कोई सदा नहीं

कजला गया है कितने ही क़दमों तले मगर

ये रास्ता अजीब है कुछ बोलता नहीं

भटका किया में ज़र्द हक़ारत के शहर में

नीली हदों के पार वो लेकिन मिला नहीं

हर साज़ पर उभरने लगे बेबसी के गीत

आओ कि रक़्स के लिए मौसम बुरा नहीं

काग़ज़ पे उस का नाम लिखो और काट दो

वो शख़्स भी तो अब हमें पहचानता नहीं

(410) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Raees Faraz. is written by Raees Faraz. Complete Poem in Hindi by Raees Faraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.