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हाथ से आख़िर छूट पड़ा पत्थर जो उठाया था - रईस फ़राज़ कविता - Darsaal

हाथ से आख़िर छूट पड़ा पत्थर जो उठाया था

हाथ से आख़िर छूट पड़ा पत्थर जो उठाया था

क्या करता मुजरिम भी तो ख़ुद अपना साया था

ऐसा होता काश कहीं कुछ रंग भी मिल जाते

उस ने मेरे ख़्वाबों का ख़ाका तो बनाया था

अब तू भी बाहर आ जा यूँ जिस्म में छुपना क्या

पर्दा ही करना था तो क्यूँ मुझ को बुलाया था

आज के मौसम से बे-सुध कुछ लोग कफ़न चेहरा

अब तक सहमे बैठे हैं तूफ़ान कल आया था

जी चाहे तो और भी रुक ले पलकों की छाँव में

मैं ने तो तुझ को वक़्त का बस एहसास दिलाया था

रोज़ सवेरे वीराना बचता है 'फ़राज़' आख़िर

हम ने रात भी ख़्वाबों में इक शहर सजाया था

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In Hindi By Famous Poet Raees Faraz. is written by Raees Faraz. Complete Poem in Hindi by Raees Faraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.