वक़्त की तेज़-रवी देख के डर जाते हैं
वक़्त की तेज़-रवी देख के डर जाते हैं
लोग जीते हैं कुछ इस तरह कि मर जाते हैं
ज़िंदगानी तिरी अज़्मत को बढ़ाने वाले
मुस्कुराते हुए मक़्तल से गुज़र जाते हैं
बज़्म-ए-याराँ हो कि दश्त-ए-शब-ए-तन्हाई हो
ज़ख़्म भरने पे जब आते हैं तो भर जाते हैं
ये शब-ओ-रोज़ भी औराक़-ए-परेशाँ की तरह
बारहा वक़्त की आँधी में बिखर जाते हैं
कितनी यादों से उलझती है मिरी तन्हाई
कितने तूफ़ान मिरे सर से गुज़र जाते हैं
दूर रह कर भी कभी शिकवा-ए-दूरी न रहा
आप ही आप हैं जिस सम्त जिधर जाते हैं
अपनी पलकों पे सजाए हुए अश्कों के चराग़
कुछ तो कहिए कि 'रईस' आप किधर जाते हैं
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