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तन्हाइयाँ जो रास न आएँ तो क्या करें - रईस अख़तर कविता - Darsaal

तन्हाइयाँ जो रास न आएँ तो क्या करें

तन्हाइयाँ जो रास न आएँ तो क्या करें

ज़ख़्मों की अंजुमन न सजाएँ तो क्या करें

इस दौर-ए-कश्मकश में मोहब्बत का नाम भी

दानिस्ता लोग भूल न जाएँ तो क्या करें

इक आसरा तो चाहिए जीने के वास्ते

हालात का फ़रेब न खाएँ तो क्या करें

दिल भी यहाँ बहुत हैं सवालात भी बहुत

लेकिन कोई जवाब न पाएँ तो क्या करें

वाक़िफ़ हैं हम भी इश्क़ के आदाब से मगर

दीवाना ख़ुद ही लोग बनाएँ तो क्या करें

वीराँ है पहली शाम से मक़्तल के रास्ते

घबरा के मय-कदे को न जाएँ तो क्या करें

दम घुट रहे हैं तल्ख़ हक़ाएक़ के ज़हर से

ख़्वाबों की बस्तियाँ न बसाएँ तो क्या करें

दुनिया के हर फ़रेब को एहसान मान कर

दुनिया का हौसला न बढ़ाएँ तो क्या करें

तफ़्सीर-ए-काएनात तो आसान है 'रईस'

अपने ही दिल का राज़ न पाएँ तो क्या करें

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In Hindi By Famous Poet Raees Akhtar. is written by Raees Akhtar. Complete Poem in Hindi by Raees Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.