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जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है - रईस अख़तर कविता - Darsaal

जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है

जाने किस वास्ते दिल चश्म-ए-करम माँगे है

ज़िंदगी आप से फिर दीदा-ए-नम माँगे है

हम कहाँ जाएँगे अब तेरी गली से उठ कर

किस का दिल है जो यहाँ दैर-ओ-हरम माँगे है

मुझ को फूलों की हवस है न तो मोती की तलाश

कासा-ए-चश्म मिरा दस्त-ए-करम माँगे है

चश्म-ए-नम को किसी दामन की तमन्ना ही सही

दिल-ए-बेताब मगर आप का ग़म माँगे है

जाने किस वास्ते इक शख़्स की बहकी हुई चाल

हर-क़दम आप के ही नक़्श-ए-क़दम माँगे है

कोई दीवाना तमन्नाओं को ज़ख़्मी पा कर

ज़िंदगी-भर के लिए रंज-ओ-अलम माँगे है

आइना-ख़ानों की यक-रंगी से उक्ता के 'रईस'

आज़र-ए-वक़्त भी पत्थर के सनम माँगे है

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In Hindi By Famous Poet Raees Akhtar. is written by Raees Akhtar. Complete Poem in Hindi by Raees Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.