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धूप रुख़्सत हुई शाम आई सितारा चमका - रबाब रशीदी कविता - Darsaal

धूप रुख़्सत हुई शाम आई सितारा चमका

धूप रुख़्सत हुई शाम आई सितारा चमका

गर्द जब बैठ गई नाम तुम्हारा चमका

हर तरफ़ पानी ही पानी नज़र आता था मुझे

तुम ने जब मुझ को पुकारा तो किनारा चमका

मुस्कुराती हुई आँखों से मिला इज़्न-ए-सफ़र

शहर से दूर न जाने का इशारा चमका

एक तहरीर कि जो साफ़ पढ़ी भी न गई

मगर इक रंग मिरे रुख़ पे दोबारा चमका

आज इक ख़्वाब ने फिर ज़ेहन में अंगड़ाई ली

और तूफ़ान में तिनके का सहारा चमका

साज़गार आने लगी थी हमें ख़ल्वत लेकिन

जी में क्या आई कि फिर ज़ौक़-ए-नज़ारा चमका

झिलमिलाने लगीं महफ़िल में चराग़ों की लवें

रुख़्सत ऐ हम-नफ़सो सुब्ह का तारा चमका

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In Hindi By Famous Poet Rabab Rashidi. is written by Rabab Rashidi. Complete Poem in Hindi by Rabab Rashidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.