तेरा क्या जाता जो मिलता जाम-ए-रेहानी मुझे
तेरा क्या जाता जो मिलता जाम-ए-रेहानी मुझे
मय के बदले साक़िया तू ने दिया पानी मुझे
मय-गुसारी में वो अब पहली सी कैफ़िय्यत नहीं
दे दिया साक़ी ने क्या बे-कैफ़ सा पानी मुझे
अब किसी मशरूब से दिल चैन पा सकता नहीं
काश वो आ के पिला दे तेग़ का पानी मुझे
दे दिया साक़ी ने भर कर मुझ को भी जाम-ए-शराब
मैं तो कहता ही रहा पानी मुझे पानी मुझे
उस को जानूँ यार मुख़्लिस उस को मानूँ ग़म-गुसार
जो पिला दे रंज में कुल्फ़त-रुबा पानी मुझे
चल पड़ीं साँसें धड़कने लग गईं नब्ज़-ए-हयात
क्या किसी ने दे दिया अंगूर का पानी मुझे
वो तप-ए-ग़म है कि सूखे हैं लब-ओ-काम-ओ-दहन
काश आ कर वो पिलाएँ दीद का पानी मुझे
पी रहा हूँ शौक़ से ऐ 'राज़' जिस को आज तक
एक दिन आख़िर डुबो देगा वही पानी मुझे
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