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मुसाफ़िर-ए-शब - राबिया पिन्हाँ कविता - Darsaal

मुसाफ़िर-ए-शब

सुकूत-ए-शब की है जल्वा-फ़रोशी

है मौजूदात पर छाई ख़मोशी

फ़ज़ा-ए-शाम को नींद आ रही है

मनाज़िर पर सियाही छा रही है

है बदला रंग दिन के शोर-ओ-शर का

हुआ तारीकियों का दौर-दौरा

रुका हंगामा-हा-ए-दिन का महशर

बढ़ा शब का सकूँ-बर-दोश मंज़र

है आख़िर रोज़-ए-रौशन की कहानी

हुई तारीक बुर्द-ए-आसमानी

गया राहत-कदे में महर-ए-ताबां

हुए अनवार आतिश-बार-ए-पिन्हाँ

है तारीकी पयाम-ए-ख़्वाब-नोशीं

ख़मोशी है नवेद-ए-रंग-ए-तस्कीं

फज़ा-ए-ग़र्ब है पैग़ाम-ए-राहत

उफ़क़ की ख़ामुशी इल्हाम-ए-राहत

है रंगीनी फ़ज़ा की कैफ़ इशरत

शफ़क़ की सुर्ख़ियाँ सामान-ए-फ़रहत

हवाओं में भरे हैं नग़्मा-ए-शब

है राहत-ज़ा रबाब-ए-ज़ख़्म-ए-शब

हुआ रौशन निगार-ए-शब का जल्वा

हैं तनवीरें फ़लक पर कार-फ़रमा

सितारों की तबस्सुम-बारियों में

कवाकिब की मुनव्वर धारयों में

सुतूर-ए-कहकशाँ की लग़्ज़िशों में

सुरय्या की मजल्ला ताबिशों में

फ़ज़ा-ए-सीम आरा-ए-फ़लक में

उफ़ुक़ की रौशन-ओ-ज़र्रीं झलक में

ज़िया-अफ़रोज़ है माह-ए-दरख़्शाँ

लबों की ताबिशें हैं ख़ंदा-अफ़्शाँ

फ़ज़ा-ए-आसमानी रह-गुज़र है

मुसाफ़िर रात का गर्म-ए-सफ़र है

सियाही शब की है हमराज़-ओ-हमदम

सुकूत-ए-शाम है दम-साज़ ओ महरम

है तन्हाई से रस्म-ए-आश्नाई

ख़याल-ए-मा-सिवा से बे-नियाज़ी

सफ़र की कैफ़ियत मद्द-ए-नज़र है

कि तख़्ईल-ए-सफ़र लुत्फ़-ए-सफ़र है

ख़बर ही कुछ नहीं हद्द-ए-सफ़र की

न कुछ परवाह तूल-ए-रह-गुज़र की

ख़मोश ओ मुतमइन है जादा-पैमा

जबीं पर इस्तक़ामत जल्वा-फ़रमा

सुकूत-ए-शब में जो यूँ सरगिराँ है

मह-ए-कामिल तिरी मंज़िल कहाँ है

तिरी रहबर उफ़क़ की ख़ामुशी है

अनीस ओ हम-सफ़र इक चाँदनी है

कमाल-ए-ज़ीस्त तेरी जुस्तुजू है

ये तर्ज़-ए-सई हद्द-ए-आबरू है

सबक़-आमोज़ तेरी दास्ताँ है

तुझे हासिल कमाल-ए-कामराँ है

तिरी सई-ए-अमल ला-इंतिहा है

अबद तक इस सफ़र का सिलसिला है

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