ख़ुदा होना बी मुश्किल है बंदा होना बी मुश्किल है
ख़ुदा होना बी मुश्किल है बंदा होना बी मुश्किल है
समझता है यू नुक्ते कूँ जो आरिफ़ साहिब-ए-दिल है
ख़ुदा है मसदर-ए-मुतलक़ बंदा बी उस सूँ है मुश्तक़
जिधर देखे उधर है हक़ वले पिंदार हाइल है
ख़ुदा माबूद है मुतलक़ बंदा मौजूद है मुतलक़
यू दोनों मुतलक़-ए-बर-हक़ समझ हर यक का मुश्किल है
ख़ुदा है बंदा बंदा है ख़ुदा चश्म-ए-यक़ीं सो देक
भी दोनों ग़ैर यक-ए-दीगर यही इरफ़ान-ए-कामिल है
बंदा है अपनी तफ़सीलात सूँ ज़ात-ए-ख़ुदा मुतलक़
सिफ़त होर फ़े'अल-ओ-क़ौल उस का बी मुतलक़-पन को शामिल है
मज़ाहिर इस के क्यूँ मुतलक़-पने सूँ होवेंगे ख़ारिज
यू सूरत ग़ौर सूँ तो देक आईने में हासिल है
निकात-ए-इश्क़ असरार-ए-ख़ुदा हैं बेगमाँ 'क़ुर्बी'
जने असरार को बुज्या वही हक़ सात वासिल है
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