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सकी तुज ज़ुल्फ़ है जीवाँ के आख़िज़ - क़ुली क़ुतुब शाह कविता - Darsaal

सकी तुज ज़ुल्फ़ है जीवाँ के आख़िज़

सकी तुज ज़ुल्फ़ है जीवाँ के आख़िज़

दसन तेरे अहें रतनाँ के आख़िज़

तिरी नैनाँ थे पंचे हैं मंतर सब

तिरे नाज़ाँ हैं सब सुथराँ के आख़िज़

सहे तुज सीस परांचल सहेली

सहे सब आशिक़-ए-दर वाँ के आख़िज़

तिरी पुतलियाँ भलाइयाँ हैं जगत कूँ

नयन दो मस्त हैं मस्ताँ के आख़िज़

नखाँ मेरे हैं तुज जोबन के मुश्ताक़

अधर मेरे तिरे बोसियाँ के आख़िज़

अली नान्वाँ ओ कहिया यू ग़ज़ल 'क़ुतुब'

अली नान्वाँ हैं सब कामाँ के आख़िज़

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In Hindi By Famous Poet Quli Qutub Shah. is written by Quli Qutub Shah. Complete Poem in Hindi by Quli Qutub Shah. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.