उम्र भर खुल नहीं पाते हैं रुमूज़-ओ-असरार
लोग कुछ सामने रह कर भी निहाँ होते हैं
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
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तेरे बिन हयात की सोच भी गुनाह थी
हो पाए किसी के हम भी कहाँ यूँ कोई हमारा भी न हुआ
कोहसार तो कहीं पे समुंदर भी आएँगे
आए थे क्यूँ सहरा में जुगनू बन कर
क्या अहद-ए-नौ में अपनी पहचान देखता हूँ
बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर न थी
जब अपने वा'दों से उन को मक्र ही जाना था
हम नए हैं न है ये कहानी नई
मोहमल है न जानें तो, समझें तो वज़ाहत है
तज़्किरे फ़हम ओ ख़िरद के तो यहाँ होते हैं
दरिया-ए-मोहब्बत में मौजें हैं न धारा है