बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर न थी
इक दिन लबों से उन के ही नश्तर भी आएँगे
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(439) Peoples Rate This
आइना हूँ कि मैं पत्थर हूँ ये कब पूछे है
अब इस तरह भी रिवायत से इंहिराफ़ न कर
हर मौज-ए-हवादिस रखती है सीने में भँवर कुछ पिन्हाँ भी
हम ज़मीं का आतिशीं उभार देखते रहे
जो परिंद ख़्वाहिशों के कभी हम शिकार करते
मोहमल है न जानें तो, समझें तो वज़ाहत है
ये ज़मान-ओ-मकाँ का सितम भी नया
जब अपने वा'दों से उन को मक्र ही जाना था
दरिया-ए-मोहब्बत में मौजें हैं न धारा है
तज़्किरे फ़हम ओ ख़िरद के तो यहाँ होते हैं