Qita Poetry (page 27)
एक सब्र-आज़मा जुदाई है
अख़्तर अंसारी
एक रेज़ा तिरे तबस्सुम का
अब्दुल हमीद अदम
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
जाँ निसार अख़्तर
एक मुद्दत सितम उठाने पर
महेश चंद्र नक़्श
एक लीडर ने ये कहा मुझ से
आसिम पीरज़ादा
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं
अली सरदार जाफ़री
एक कम-सिन हसीन लड़की का
जाँ निसार अख़्तर
इक डॉक्टर मरीज़ को समझा रहा था यूँ
इनाम-उल-हक़ जावेद
इक बे-वफ़ा से अहद-ए-वफ़ा कर के आए हैं
नासिर ज़ैदी
इक बर्ग-ए-मुज़्महिल ने ये स्पीच में कहा
अकबर इलाहाबादी
एक बहकी हुई नज़र तेरी
साग़र सिद्दीक़ी
इक ऐसा वक़्त भी आता है चाँदनी शब में
क़तील शिफ़ाई
इक आह-ए-आतिशीं में डबल काम हो गया
बेढब बदायूनी
एजाज़-ए-इज्ज़
अनवर मसूद
दूसरों को मिटाने की धुन में
वसीम बरेलवी
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
जाँ निसार अख़्तर
दूर पीपल की बूढ़ी शाख़ों में
प्रेम वारबर्टनी
दूर घाटी से सर उठा के शफ़क़
साबिर दत्त
दुनिया से 'ज़ौक़' रिश्ता-ए-उल्फ़त को तोड़ दे
ज़ौक़
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
मीर तक़ी मीर
दूल्हा
पॉपुलर मेरठी
दुख-भरी दास्तान माज़ी की
साग़र सिद्दीक़ी
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
हबीब जालिब
दुआ
अनवर मसूद
दोस्तो मशवरे न दो हम को
हबीब जालिब
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
जाँ निसार अख़्तर
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
जाँ निसार अख़्तर
दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
एहसान दानिश
दोपहर होने को है सन्ना गया जंगल तमाम
एहसान दानिश
डॉलर की मोहब्बत
खालिद इरफ़ान