Qita Poetry (page 24)
हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू
साग़र सिद्दीक़ी
हर ख़िज़ाँ ग़ारत-गर-ए-चमन ही सही
सूफ़ी तबस्सुम
हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए
शकील आज़मी
हर इक ज़र्रे में है शायद मकीं दिल
अल्लामा इक़बाल
हर एक ख़ुशी दर्द के दामन में पली है
अली सरदार जाफ़री
हाँ आइने मैं नाज़ की तस्वीर देख लो
नवा लखनवी
हम-सफ़र
शौकत परदेसी
हम-नशीं उफ़ इख़्तिताम-ए-बज़्म-ए-मय-नोशी न पूछ
एहसान दानिश
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
अख़्तर अंसारी
हमेशा जागते ही जागते सहर कर दी
अख़्तर अंसारी
हमारी क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ का सानी नहीं कोई
अफ़ज़ल इलाहाबादी
हमारे दम से है कू-ए-जुनूँ में अब भी ख़जिल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हमारे चारों तरफ़ है हुजूम काँटों का
अफ़ज़ल इलाहाबादी
हमारे अहल-ए-चमन हम से सरगिराँ तो नहीं
नज़ीर बनारसी
हल्क़ा-ए-मय से किसी को भी निकलने न दिया
गणेश बिहारी तर्ज़
हल्की हल्की फुवार के दौरान में
अख़्तर अंसारी
हल्का सब्ज़ा था जब याँ आई थी
आरिफ़ इशतियाक़
हकला गया जो शादी में दूल्हा तो क्या हुआ
आसिम पीरज़ादा
हैरान हो के मुँह मिरा तकते हैं बार बार
हफ़ीज़ जालंधरी
हैं शाएर-ओ-अदीब ओ मुफ़क्किर अज़ीम-तर
अतहर शाह ख़ान जैदी
हैं आँधियों में भी रौशन चराग़-ए-हक़ 'अफ़ज़ल'
अफ़ज़ल इलाहाबादी
है विटामिन की कमी आशिक़ में तेरे इस क़दर
आसिम पीरज़ादा
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
जौन एलिया
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
महेश चंद्र नक़्श
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
अख़्तर अंसारी
है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब
साग़र सिद्दीक़ी
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
जाँ निसार अख़्तर
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
महेश चंद्र नक़्श
हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
अख़्तर अंसारी
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा
सीमा ग़ज़ल