Qita Poetry (page 22)
इस रुपहली शराब-ए-नूरीं से
अख़्तर अंसारी
इस राज़ से वाक़िफ़ नहीं 'अफ़ज़ल' ये ज़माना
अफ़ज़ल इलाहाबादी
इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश
अल्लामा इक़बाल
इस क़दर जल्वा-ए-जानाँ को हैं बे-ताब आँखें
अफ़ज़ल इलाहाबादी
इस मर्तबा भी आए हैं नंबर तिरे तो कम
पॉपुलर मेरठी
इस मईशत के साए में हमदम
अख़्तर अंसारी
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
जाँ निसार अख़्तर
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
नरेश कुमार शाद
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
सय्यदा अरशिया हक़
'इक़बाल' ने कल अहल-ए-ख़याबाँ को सुनाया
अल्लामा इक़बाल
इक़बाल क्या बताऊँ कि क्या है क़लंदरी
क़ाज़ी अब्दुल वदूद
इंतिक़ाम-ए-ग़म-ओ-अलम लेंगे
नरेश कुमार शाद
इल्म के थे बहुत हिजाब मगर
सूफ़ी तबस्सुम
इलाही उस को मोहब्बत से कुछ तअल्लुक़ है
अख़्तर अंसारी
इधर तो नाज़-बिरादरी जो पहले थी सो अब भी है
नियाज़ स्वाती
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
अख़्तर अंसारी
ईद का दिन है फ़ज़ा में गूँजते हैं क़हक़हे
अहमद नदीम क़ासमी
हुस्न-ए-बुताँ को देख के मैं दंग रह गया
रज़ा बिजनौरी
हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ार लिए बैठे हैं
साबिर दत्त
हुस्न तेरा कभी गुल और कभी माहताब हुआ
अली सरदार जाफ़री
हुस्न की दास्ताँ बना डाला
अख़्तर अंसारी
हुस्न की आँख अगर हया न करे
हफ़ीज़ जालंधरी
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
जाँ निसार अख़्तर
हुस्न ही हुस्न का हर शहर में जल्वा होता
साग़र ख़य्यामी
हुस्न ही हुस्न है फ़ितरत के सनम-ख़ाने में
अली सरदार जाफ़री
हम ये कहते थे कि अहमक़ हो जो दिल को देवे
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
हम तो अपने दिल पे सारे सानेहे सह जाएँगे
सदार ख़ान सोज़
हम लोग हैं वाक़ई अजूबा
रईस अमरोहवी
हम को तो मयस्सर नहीं मिट्टी का दिया भी
अल्लामा इक़बाल
हम खस्ता-तनों से मुहतसिबो क्या माल-मनाल का पूछते हो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़