Qita Poetry (page 17)
क्या कभी उस से मुलाक़ात हुई है तेरी
अफ़ज़ल इलाहाबादी
क्या बूद-ओ-बाश पूछो हो पूरब के साकिनो
अज्ञात
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
जौन एलिया
कुंज-कावी जो की सीने में ग़म-ए-हिज्राँ ने
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
कुंज-ए-ज़िंदाँ में पड़ा सोचता हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
कुफ़्र क्या तसलीस क्या इल्हाद क्या इस्लाम क्या
असरार-उल-हक़ मजाज़
कुछ इस लिए भी उसे टूट कर नहीं चाहा
अज़ीज़ फ़ैसल
कूचा-ए-सुब्ह में जा पहुँचे हम
हबीब जालिब
कोई ताज़ा अलम न दिखलाए
साग़र सिद्दीक़ी
कोई साग़र में देखता है फ़रार
मुस्तफ़ा ज़ैदी
कोई जंगल में गा रहा है गीत
अख़्तर अंसारी
कोई हर गाम पे सौ दाम बिछा जाता है
अली सरदार जाफ़री
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
अल्लामा इक़बाल
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
मीर तक़ी मीर
कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम
अब्दुल हमीद अदम
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
जाँ निसार अख़्तर
कितनी हंगामा-ख़ू तमन्नाएँ
सूफ़ी तबस्सुम
कितने सपनों के मुकुट टूट गए इक पल में
प्रेम वारबर्टनी
कितने पाकीज़ा हैं नौ-ख़ेज़ जवानी के कलस
प्रेम वारबर्टनी
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
आसिम पीरज़ादा
किसी को देखूँ तो माथे पे माह-ओ-साल मिलें
ख़ालिद शरीफ़
किसी की फिर मिरे दिल पर हुकूमत होती जाती है
सदार ख़ान सोज़
किसी की बेवफ़ाई पर वो अक्सर याद आते हैं
सदार ख़ान सोज़
किसी ख़याल में मदहोश जा रहा था मैं
अख़्तर अंसारी
किस क़यामत के लम्हे थे 'अख़्तर'
अख़्तर अंसारी
किस क़दर ज़ालिम ओ वहशी था वो पागल मूज़ी
अतहर शाह ख़ान जैदी
किस क़दर नूर-ए-सहर देख के शरमाते हैं
अली सरदार जाफ़री
किस लिए अब हयात बाक़ी है
गणेश बिहारी तर्ज़
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
जाँ निसार अख़्तर
किराए का घर
खालिद इरफ़ान