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बे-ज़मीरी - क़ाज़ी सलीम कविता - Darsaal

बे-ज़मीरी

ज़मीं घूमी

हवा बदली

चलो मौसम बदलता है

'सलीम' अब तुम पहाड़ों से उतर आओ

वो देखो

चियूँटियों के पर निकल आए

कैसे उड़ती फिर रही हैं

आज शान-ए-बे-नियाज़ी से

कि जैसे मुतमइन हैं

मकड़ियों की सरफ़राज़ी से

'सलीम' अब तुम पहाड़ों से उतर आओ

तुम्हारी दूर की आवाज़ कैसे गूँज बन कर

पलट आई है

जैसे बस्तियों के

सभी घर हुए हैं

कोई हथियार भी सालिम नहीं

नुकीले दाँत

काँटे

डंक

नाख़ुन

हिफ़ाज़त के सभी सामान जैसे छिन गए हैं

तभी तो ज़ालिमों से

चंद रोज़ा आफ़ियत की भीक पा कर

ख़ुदा की गोद में बे-फ़िक्र सोते हैं

समझते हैं

कि मज़लूमी का ये बहरूप ही

फ़िक़रा-ए-क़नाअ'त का बदल है

कोई पत्थर उठाए खींच मारे

दिखावे के लिए पत्थर उठा कर चूम लेंगे

ये किस दुनिया में बस्ते हैं

ये किस का पास रखते हैं

ख़ुद अपनी मौत की नज़्ज़ारगी का ज़ख़्म दे कर

दरिंदों की निगाहों से

उलूही रौशनी की आस रखते हैं

'सलीम' अब तुम पहाड़ों से उतर आओ

तुम्हारे राज़ तुम ही जानते हो

सब कुछ झूट है इक ढोंग है

हम में कोई

अय्यूब है बुध है

हुसैन-इब्न-ए-अली और न ईसा है

बस इतना है ज़मीर अपना कभी का बिक चुका है

अँधेरे की पनह-गाहों में

सेहर-ए-सामरी से

आज सब मबहूत हैं

हाथ पाँव ज़ेहन सब मफ़्लूज हैं

सोने का बछड़ा बोलता है

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In Hindi By Famous Poet Qazi Saleem. is written by Qazi Saleem. Complete Poem in Hindi by Qazi Saleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.