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ऐ सखीयन मैं ने देख्या संग कर के यार का - क़ाज़ी महमूद बेहरी कविता - Darsaal

ऐ सखीयन मैं ने देख्या संग कर के यार का

ऐ सखीयन मैं ने देख्या संग कर के यार का

पन न देख्या बे-समझ होर संग-दिल तुझ सार का

जीव लेने जानता होर दिलबरी के तू कला

घर में है लग आपना होर भारगे परपार का

जीव जल कहता हूँ मैं पन सुन तूँ संगीं हूँ निकू

बोल अपस की बिरह की पर बस में बिल्खन्हार का

घाव कारी उछ न जाना जीव होर जम तल्खली

यूँ तो ख़ासियत दिस्या तुझ इश्क़ की तरवार का

तिल तिरे रखते हैं जागा तीन लक प्यादे की आज

चक तिरे करते हैं दा'वा चार लक असवार का

इश्क़ में कुछ अद्ल अछुता तो न अछुता बे-धड़क

दुख दिलावर लश्करी सर काट सुख सरदार का

'बहरिया' सर पाँव क्यूँ करता हक़ीक़त का सो बोल

गिरना खड़ता सर पे तेरे यू मजाज़ी मार का

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In Hindi By Famous Poet Qazi Mahmud Behri. is written by Qazi Mahmud Behri. Complete Poem in Hindi by Qazi Mahmud Behri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.