झूट की मिक़दार कम है और सच्चाई बहुत
झूट की मिक़दार कम है और सच्चाई बहुत
साफ़-गोई से हुई है मेरी रुस्वाई बहुत
अपनी कम-गोई से क़द-आवर तो छोटे बन गए
बढ़ गई लफ़्फ़ाज़ बौनों की अब ऊँचाई बहुत
बे-नियाज़ाना मैं अपनी जुस्तुजू में गुम रहा
याद उन की मेरे दिल में आ के शर्माई बहुत
तीरा-बख़्ती ने असीरी में निभाया मेरा साथ
रौज़न-ए-ज़िंदाँ से यूँ तो रौशनी आई बहुत
खोखले अल्फ़ाज़ मरहम बन न पाए ऐ 'रज़ा'
झूटे सच्चे आँसुओं ने की मसीहाई बहुत
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