इक़बाल क्या बताऊँ कि क्या है क़लंदरी
इक़बाल क्या बताऊँ कि क्या है क़लंदरी
अच्छा सा इक ख़िताब हो अच्छी सी नौकरी
बोतल मय-ए-फ़रंग की रक्खी हो सामने
और हो बग़ल में उस के पिलाने को इक परी
ऐसी परी हो जिस को हो शौक़-ए-मुबाशरत
ये सब नहीं तो हेच है ऐसी क़लंदरी
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