हर एक रंग हर इक ख़्वाब के हिसार में तू
हर एक रंग हर इक ख़्वाब के हिसार में तू
कि आँसुओं की तरह चश्म-ए-इन्तिज़ार में तू
उदास राख से मंज़र के एक शहर में मैं
नए जहान की इक सुब्ह-ए-ज़र-निगार मैं तू
में इतने दूर उफ़ुक़ से परे भी देख आया
मिला तो जिस्म पर बिखरे हुए ग़ुबार में तू
में ज़ख़्म ज़ख़्म ख़िज़ाओं के बीच ज़िंदा हूँ
नुमू-पज़ीर बहारों के रंग-ज़ार में तू
कि तेरा नाम तो जलते दियों की लौ में है
तू बाँसुरी की हर इक तान में पुकार में तू
ये रहगुज़र तो तमाज़त के शहर को जाए
कहीं जले न बहिश्तों के ए'तिबार में तू
मुझे बचा ले तआक़ुब से ज़र्द मौसम के
मुझे छुपा ले पनाहों के सब्ज़ ग़ार में तू
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