ग़म-क़िर्तास पे अपने कर्ब की बातें लिखते रहना
ग़म-क़िर्तास पे अपने कर्ब की बातें लिखते रहना
हिज्र-किताब को पढ़ते रहना शरहें लिखते रहना
फिर यूँ होगा इक गुम-गश्ता चेहरा सामने होगा
ख़्वाबों की दीवार बनाना आँखें लिखते रहना
इतना करना अपनी सोच की आन न बिकने देता
दिन की दिन ही और रातों को रातें लिखते रहना
ऐसा वक़्त न आने देना सूखें सोच-समुंदर
लहरों से आवाज़ मिलाना मौजें लिखते रहना
बाहर के इस शोर में तेरी बातें दब जाएँ तो
अंदर से जो आती हैं आवाज़ें लिखते रहना
'ताहिर'! उन बे-बस लम्हों का अहद निभाना होगा
उस ने कहा था ख़त मत लिखना ग़ज़लें लिखते रहना
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