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दिखाए गर्द के ख़ेमे प घर नहीं लिक्खा - क़य्यूम ताहिर कविता - Darsaal

दिखाए गर्द के ख़ेमे प घर नहीं लिक्खा

दिखाए गर्द के ख़ेमे प घर नहीं लिक्खा

सफ़र तो सौंप गया वो शजर नहीं लिक्खा

वो आश्ना मुझे पानी से कर के लौट गया

किसी भी लहर में जिस ने गुहर नहीं लिक्खा

बशारतें थीं कि पोरों की सम्त आती थीं

मगर ये हाथ कि जिन में हुनर नहीं लिक्खा

अजब गुमान थे क़ौस-ए-निगाह में उस की

खंडर से शहर को इस ने खंडर नहीं लिक्खा

हर एक रुत की दुआ भी हवा भी आई थी

ये बाँझ पेड़ कि इन पर समर नहीं लिक्खा

उस एक लफ़्ज़ की सिसकी मुझे रुलाती है

वो एक लफ़्ज़ जिसे जान कर नहीं लिक्खा

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In Hindi By Famous Poet Qayyum Tahir. is written by Qayyum Tahir. Complete Poem in Hindi by Qayyum Tahir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.