तेरी निगह से तुझ को ख़बर है कि क्या हुआ
तेरी निगह से तुझ को ख़बर है कि क्या हुआ
दिल ज़िंदगी से बार-ए-दिगर आश्ना हुआ
इक इक क़दम पे उस के हुआ सज्दा-रेज़ मैं
गुज़रा था जिस जहाँ को कभी रौंदता हुआ
देखा तुझे तो आरज़ूओं का हुजूम था
पाया तुझे तो कुछ न था बाक़ी रहा हुआ
दश्त-ए-जुनूँ में रेग-ए-रवाँ से ख़बर मिली
फिरता रहा है तू भी मुझे ढूँढता हुआ
एहसास-ए-नौ ने ज़ीस्त का नक़्शा बदल दिया
महरूमियों का यूँ तो चमन है खिला हुआ
चमका है बन के सर्व-ए-चराग़ाँ तमाम उम्र
क्या आँसुओं का तार था तुझ से बंधा हुआ
बिखरे हैं ज़िंदगी के कुछ इस तरह तार-ओ-पूद
हर ज़र्रा अपने-आप में महशर-नुमा हुआ
पूछो तो एक एक है तन्हा सुलग रहा
देखो तो शहर शहर है मेला लगा हुआ
पर्दा उठा सको तो जिगर तक गुदाज़ है
चाहो कि ख़ुद हो यूँ तो है पत्थर पड़ा हुआ
इंसान-दोस्ती के तक़ाज़ों का सिलसिला
इंसान-दुश्मनी की हदों से मिला हुआ
अक़दार के फ़रेब में अब आ चुका 'नज़र'
कश्ती डुबो गया जो ख़ुदा, नाख़ुदा हुआ
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