सूरज की किरन का शोबदा है
सूरज की किरन का शोबदा है
रंग-ए-रुख़-ए-ज़र्द उड़ गया है
नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ने गुल खिलाए
वीराँ कहाँ अब ये रास्ता है
जाग उट्ठी हैं ज़िंदगी की राहें
शायद कोई चाँद को गया है
शोलों से हुआ था बाग़ ख़ाली
फिर सीना-ए-गुल भड़क उठा है
पत्ते पत्ते का रंग बदला
बदली बदली हुई फ़ज़ा है
पहले तो न यूँ कभी हुआ था
तू भी मुझे देख कर हँसा है
बेगानगी ने ये राज़ खोला
तू मेरा अज़ल से आश्ना है
शबनम सर-ए-नोक-ए-ख़ार यानी
लब पे मिरे हर्फ़-ए-मुद्दआ है
हर दर्द नहीं दवा का मुहताज
यूँ भी तो इलाज-ए-ग़म हुआ है
तेरा ही रहेगा बोल-बाला
दिल मेरा अबस धड़क रहा है
(428) Peoples Rate This