जाएँ घुड़-दौड़ पर कि खेलें ताश
जाएँ घुड़-दौड़ पर कि खेलें ताश
'मीर'-जी राज़-ए-इश्क़ होगा फ़ाश
पत्थरों में लगा रहे हैं जोंक
चाँद में ख़ून-ए-गर्म की है तलाश
यूँ झगड़ते हैं झूटी क़द्रों पर
ज़न-ए-फ़ाहिश पे जिस तरह औबाश
नए अंदाज़ से हनूत हुई
अब न बू देगी ज़िंदगी की लाश
उड़ गया भाप बन के दिल का लहू
अब ज़मीं दूर है क़रीब आकाश
हुए मफ़्लूज वो भी जिन के लिए
एक आलम था बर-सर-ए-परख़ाश
लाला-ए-कोह को दिमाग़ नहीं
नश्शा लाती है मुख़्तलिफ़ ख़शख़ाश
कैसे भूखों मरेंगे इतने लोग
बे-हुदा अहद-ए-नौ में फ़िक्र-ए-क़िमाश
हफ़्त-इक़्लीम के ख़ज़ानों पर
हाथ डालेंगे अन-गिनत क़ल्लाश
अब न आया हिसार से बाहर
नक़्श में ख़ुद ही ढल गया नक़्क़ाश
रश्क-ए-गुल हों कि मिस्ल-ए-नश्तर हों
यही नाख़ुन 'नज़र' में ज़ख़्म-तराश
(580) Peoples Rate This