इन की जब नुक्ता-वरी याद आई
इन की जब नुक्ता-वरी याद आई
अपनी ही बे-ख़बरी याद आई
याद आई भी तो यूँ अहद-ए-वफ़ा
आह की बे-असरी याद आई
आज क्यूँ उन को ब-आग़ोश-ए-रक़ीब
मेरी ही हम-असरी याद आई
दिल ने फिर वक़्त से लड़ना चाहा
फिर वही दर्द-भरी याद आई
अपना सीना हुआ रौशन तो उन्हें
हुस्न की कम-नज़री याद आई
जब भी ध्यान आया कहीं मंज़िल का
राह की शब-बसरी याद आई
किस को हासिल है दिमाग़-ए-नाला
बे-सबब बे-हुनरी याद आई
देख कर बे-दिली-ए-शौक़ का रंग
अपनी आशुफ़्ता-सरी याद आई
उस पे क्या गुज़री जो इस आलम में
फूल को जामा-दरी याद आई
बाग़ का हाल वो देखा है 'नज़र'
शाख़ थी जो भी हरी याद आई
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