चमन-बंदी पे है महशर बपा क्या
चमन-बंदी पे है महशर बपा क्या
खिले हैं गुल उड़ी है ख़ाक क्या क्या
शहीदान-ए-वफ़ा भी जी उठेंगे
कोई जादू जगा अब पूछना क्या
ख़िराम-ए-नाज़ मौज़ूँ है तुझी को
उठी अठखेलियाँ करती सबा क्या
फ़साद-ए-ईं-ओ-आँ है किस के दम से
कहेंगे और तुझ से बरमला क्या
क़यामत है कि वो यूँ भी हैं ना-ख़ुश
दुआ में भी था हर्फ़-ए-मुद्दआ क्या
फ़रेब-ए-आगही ने मार डाला
ख़ुदा क्या नाख़ुदा क्या और क्या क्या
यही उड़ता हुआ लम्हा रहेगा
अबस है इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
ग़ुबार-ए-कहकशाँ छट भी गया तो
कहीं ले जाएगा ये रास्ता क्या
'नज़र' इस कैफ़ियत से कौन निकले
हुआ वो आश्ना ना-आश्ना क्या
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