मैं किन आँखों से ये देखूँ कि साया साथ हो तेरे
मुझे चलने दे आगे या टुक उस को पेशतर ले जा
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सुब्ह तक था वहीं ये मुख़्लिस भी
आ ऐ 'असर' मुलाज़िम-ए-सरकार-ए-गिर्या हो
चाहें हैं ये हम भी कि रहे पाक मोहब्बत
परवाने की शब की शाम हूँ मैं
ओहदे से तेरे हम को बर आया न जाएगा
टुकड़े कई इक दिल के मैं आपस में सिए हैं
मिरा जी गो तुझे प्यारा नहीं है
'क़ाएम' जो कहें हैं फ़ारसी यार
पास-ए-इख़्लास सख़्त है तकलीफ़
इक ढब पे कभू वो बुत-ए-ख़ुद-काम न पाया
वाक़िफ़ नहीं हम कि क्या है बेहतर