मैं कहा अहद क्या किया था रात
हँस के कहने लगा कि याद नहीं
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मैं ख़ूब अहल-ए-जहाँ देखे और जहाँ देखा
शिकवा न बख़्त से है ने आसमाँ से मुझ को
आवे ख़िज़ाँ चमन की तरफ़ गर मैं रू करूँ
हर इक सूरत में तुझ को जानते हैं
पास-ए-इख़्लास सख़्त है तकलीफ़
क़िस्मत तो देख टूटी है जा कर कहाँ कमंद
हाथों से दिल ओ दीदा के आया हूँ निपट तंग
मय की तौबा को तो मुद्दत हुई 'क़ाएम' लेकिन
मैं कहा ख़ल्क़ तुम्हारी जो कमर कहती है
दिन ही मिलिएगा या शब आइएगा
मालूम कुछ हुआ ही न दिल का असर कहीं
तरफ़ ने बंद किया है हर इक तरफ़ से तुझे